एक चिराग अंधेरे में जल रहा|
एक परिधि का अंधेरा निकल रहा ||
हवा के थपेड़ों से मंद मंद मचल रहा|
क्योंकि तूफान में भी यह अचल रहा ||
मीलों तक फैल रही है इसकी किरण|
मंद हवा में मचल रहा है जैसे वन की हिरण||
अनंत तक जलने वाला है ये जोत|
दूर दरिया में बून्द सा दिख रहा एक पोत||
लौ है इसकी प्रचंड |
न ही खुद पर इसे घमंड ||
काली गुफा को उजाला किया|
अखंड ज्योति का है यह दिया||
तेज से हर ओर उजाले छा गए|
आज पतंग के पर आज वापस आ गए||
नीचे नीला मध्य पीला और ऊपर लाल |
खुश है शांत है या है बेहाल ||
हर पल हर घड़ी पिघल रहा|
एक चिराग सुदूर अंधेरे में चल रहा||
जल रहा है ईंधन निकल रहा काली धुआं \
फैला रहा उजियारा या बना रहा मौत का कुआँ ||
कुछ ने इसका गुण गाया कुछ बुरा कहा |
किसी ने पूरा तो किसी ने अधूरा कहा \\
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